Thursday, September 30, 2021

Talent Coaching Classes,Pur

संस्कृत-भाषा-व्यवहारे घटिका-सम्बन्धि-कालसूचक-शब्दाना प्रयोगः अतीव सरलः भवति, तदेव अत्र प्रदश्यते । दो तावत् सामान्य-समयलेखनम् इत्युक्ते पूर्ण-समयलेखनं कथमिति दर्यते – (संस्कृत भाषा व्यवहार में घड़ी सम्बन्धी समयसूचक शब्दों का प्रयोग बहुत सरल होता है, उसी को यहाँ प्रदर्शित किया गया है। प्रारम्भिक समय में सामान्य समय लेखन यह कहा गया पूर्ण समय लेखन कैसे हो, इसे दर्शाया गया है।)

सामान्यम् (पूर्णम्)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q1

सपाद-सार्ध-पादोन (सवा, आधा (साढ़े), पौन)।

चतुर्थांशः ‘पाद’ इति अर्धाश: च ‘अर्ध’ इति कथ्यते । अतो हि सवा’ इत्यस्य कृते संस्कृते ‘सपाद’ इति, ‘साढ़े’ इत्यस्य कृते ‘सार्ध’ इति, ‘पौन’ इत्यस्य कृते च ‘पादोन’ इति शब्दः प्रयुज्यते। यथा

(चतुर्थाश ‘पद’ और ‘अर्धांश को अर्ध कहा जाता है। इसी प्रकार ही सवा’ इसके लिए संस्कृत में ‘सपाद,’ ‘साढ़े इसके लिए सार्ध और ‘पौन’ इसके लिए ‘पादोन’ शब्द प्रयुक्त किया जाता है। अर्थात् ‘सवा’ के लिए ‘सपाद’, साढ़े के लिए ‘सार्ध’ तथा पौन के लिए पादोन शब्द का प्रयोग किया जाता है।)

अब सवा चार बजे हैं।                 अधुना सपादचतुर्वादनम् अस्ति।
अब साढ़े चार बजे हैं।                अधुना सार्धचतुर्वादनम् अस्ति।
अब पौने चार बजे हैं।                 अधुना पादोनचतुर्वादनम् अस्ति।
एकैकां घटिकां दृष्ट्वा तत्सम्बद्ध-वाक्यं च पठित्व वदन्तु यत् कः कः कतिवादने किं किं करोति- (एक-एक घड़ियों को देखकर उसमें संबंधित वाक्यों को पढ़िए और बताइए कौन-कौन कितने बजे क्या-क्या करता है।)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q2

सार्ध (साढे)-जब घड़ी की बड़ी सुई 6 (छ:) पर होती है तथा छोटी सुई किन्हीं दो अंकों के ठीक बीच में हो, तो पूर्ववाले अंक के ‘साढे’ बजते हैं । यदि छोटी सुई 3 और 4 के ठीक बीच में हो तो साढ़े तीन बजेंगे । ‘साढ़े’ के लिए ‘सार्ध’ तथा बजे के लिए ‘वादनम्’ का प्रयोग करते हैं । 1: 30 तथा 2 : 30 को क्रमशः ‘डेढ़’ और ‘ढाई’ कहते हैं। साढ़े एक और साढ़े दो नहीं । जैसे –

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q4

पादोन (पौन) – जब पूर्णांक में एक-चौथाई भाग कम होता है, तो उसे ‘पौन’ कहते हैं । घड़ी में जब मिनट की बड़ी सुई 9 अंक पर होती है तब वह 45 मिनट को प्रदर्शित करती है तो हम कहते हैं कि पौने दो, पौने चार, पौने छह, पौने नौ आदि बजे हैं । संस्कृत में इसी ‘पौने’ को ‘पादोन’ कहते हैं । 12:45 को ‘पौन’ कहते हैं, ‘पौने एक’ नहीं। संस्कृत में ‘पौन’ वाले समय को इस प्रकार बताते हैं –
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q5
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q5a

कला / निमेषः
‘मिनिट’ इत्यस्य कृते ‘कला’ अथवा ‘निमेष:’ इति शब्दस्य प्रयोगः भवति। 5.10 वादनम्’ इति अर्थ बोधयितुं अङ्कानां स्थाने दश कलोत्तर-पञ्चवादनम्/दश निमेषोत्तर-पञ्चवादनम्/दश कलाधिक-पञ्चवादनम्/दश निमेषाधिकपञ्चवादनम्/दशोत्तर-पञ्चवादनम्/दशाधिक पञ्चवादनम् वा इत्येवं शब्दप्रयोगः क्रियते । इदानींम उदाहरणानि पश्यन्तु– (‘मिनिट के लिए ‘कला’ या ‘निमेष’ शब्द का प्रयोग होता है। 5.10 बजे इस अर्थ को जानने के लिए अंकों के स्थान पर दश कलोत्तर-पञ्चवादनम्। दश निमेषोत्तर पञ्चवादनम् । दश कलाधिक पञ्चवादनम्। दश निमेषाधिक पञ्चवादनम् । दशोत्तर पञ्चवादनम् अथवा दशाधिक पञ्चवादनम् ऐसा शब्द प्रयोग किया जाता है। इन उदाहरणों को देखें-)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q6

ध्यातव्यय्
संस्कृत में मिनट को पल’ अथवा ‘कला’ कहते हैं । संस्कृत में जब समय पूर्णांक, सपाद, सार्ध, पादोन के अतिरिक्त मिनट अर्थात् ‘पल’ में (जैसे- आठ बजकर दस मिनट) बताना होता है, तब पूर्णाक समय से पहले मिनट की संख्या, उसके बाद मिनट की संस्कृत, फिर ‘उत्तर’ शब्द लगाकर समय बताते हैं; यथा–‘ आट बजकर दस मिनट’ को संस्कृत में इस रूप में बताएँगे-दश-पल-उत्तर-अष्टवादनम् = दशपलोत्तराष्ट्रवादनम् ।
मिनट में कुछ अन्य समय इस प्रकार बताये जा सकते हैं –
2 : 05 (दो बजकर पाँच मिनट) 10 : 25(दस बजकर पच्चीस मिनट)
पञ्चपलोत्तरद्विवादनम् । पञ्चविंशतिपलोत्तरदशवादनम्।

6 : 07 (छह बजकर सात मिनट) 4:55 (चार बजकर पचपन मिनट)
सप्तपलोत्तरषड्वादनम् । पञ्चपञ्चाशत्पलोत्तरचतुर्वादनम्

4 : 55 (चार बजकर पचपन मिनट) को पञ्चकलान्यूनपञ्चवादनम् भी कह सकते हैं । जैसे –
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q7
4 : 10 (चार बजकर दस मिनट)
दशकलाधिकचतुर्वादनम्

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q8
4 : 05 (चार बजकर पाँच मिनट)
पञ्चकलाधिकचतुवदनम्

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q9
6 : 05 (छ: बजकर पाँच मिनट)
पञ्चकलाधिकचतुवदनम्

यदि एक मिनट से 15 मिनट तक कम हों तो ‘अधिक’ के स्थान पर ‘न्यून’ लगाकर भी समय बताया जाता है । जैसे
4 : 50 (पाँच में दस मिनट की देर) 3 : 47 (चार में तेरह मिनट की देर)
दशकलान्यूनपञ्चवादनम् । त्रयोदशकलान्यूनचतुर्वादनम्।

यदि बारह बजे (दोपहर) से पहले का समय हो तो ‘प्रात:’ या ‘पूर्वाह्न’ तथा दोपहर बारह बजे बाद का हो तो ‘सायं’ या * अपराह्न’ शब्दों का प्रयोग करते हैं । जैसे –
प्रातः 7 : 30 A.M. (प्रात: साढ़े सात बजे) पूर्वाहने/प्रातः सार्धसप्तवादने ।
सायं 345 PM. (सायं पौने चार बजे) अपराह्न/सायं पादोनचतुर्वादने ।

समयबोधकानि अन्यवाक्यानि (समयबोधक अन्य वाक्य)

आपको दो बजे अवश्य जाना है।                  भवता द्विवादने अवश्यं गन्तव्यम् अस्ति।
ठीक तीन बजे एक बस छूटती है।                 त्रिवादने एक बसयानं गच्छति ।
क्या तुम पौने छ: बजे मिलते हो?                   कि त्वं पादोन षड्वादने मिलसि ?
मैं साढ़े पाँच बजे घर पर ही रहता हूँ।             अहं सार्धपञ्चवादने गृहे एव तिष्ठामि।
संस्कृत-वार्ता प्रसार कब होता है?                  संस्कृतवार्ताप्रसारः कदा भवति?
ढाई घण्टे का कार्यक्रम है।                           सार्धद्विघण्टात्मकः कार्यक्रमः।
क्या दस बज गए?                                      कि दशवादनम् जातम् ? ।
मैं छ: बजे से सात बजे तक पढ़ता हूँ।            अहं षड्वादनतेः सप्तवादनपर्यन्तं पठामि।
अब तीन बजने में पाँच मिनट है।                   अधुना पञ्चन्यूनत्रिवादनम् अस्ति।
अब चार बजकर दस मिनट हैं।                    अधुना देशाधिकचतुर्वादनम् अस्ति।
अब छः बजकर चालीस मिनट हैं।                 अधुना चत्वारिंशदधिकषड्वादनम् अस्ति।
सवा बजे लिखता है।                                   संपादक-वादने लिखति।।
सात बजकर चालीस मिनट पर कहता है।      चत्वारिंशत्यधिक-सप्तवादने कथयति ।
अब आठ बजकर पचास मिनट हुए हैं।          अधुना पञ्चाशदधिक-अष्टवादनम् अस्ति ।।
चार बजे से छ: बजे तक खेलता है।                चतुर्वादनतः षड्वादन-पर्यन्तं क्रीडति ।
तस्लीमा नसरीन सवा बारह बजे बोलती है।      तस्लीमा नसरीन: संपाद-द्वादशवादने भाषते ।

प्रश्न 5.
अधस्तन-घटिका-चित्राणि दृष्ट्वा समयं लिखत
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q10
उत्तराणि:
1 (i) पञ्चवादने (ii) सार्धपञ्चवादने (iii) सप्तवादने (iv) सार्धएकादशवादने (v) द्वादशवादने (vi) सार्ध द्वादशवादने (vii) साधैकवादने (viii) द्विवादने (ix) चतुर्वादने (x) सार्धचतुर्वादने (Xi) सार्ध पञ्चवादने (xii) सप्तवादने (xiii) सार्धसप्तवादने (xiv) सार्धनवदने (xv) दशवादने।
2. (i) प्रातः सार्ध सप्तवादने (ii) प्रात: दशवादने (iii) प्रात: सपाद दशवादने (iv) पादोन एकवादने
3. (i) सायं सार्ध सप्तवादने (ii) सायं अष्टवादने (iii) सायं सपाद नववादने (iv) सायं पादोन दशवादने
4. (i) प्रातः सार्धषट्वादने (ii) प्रातः पादोन अष्टवादने (iii) प्रातः सपाद अष्टवादने (iv) प्रातः एकादशवादने ।

अभ्यासः

1. घटिकाः दृष्ट्वा रिक्तस्थानेषु लिखत, अहम् कदा किं करोमि ?
(घड़ियाँ देखकर रिक्त-स्थानों में लिखिए, मैं कब क्या करता हूँ ?)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q11
उत्तरम्:
(i) अहं सायं सार्धचतुर्वादने लेखं लिखामि ।
(ii) अहं सायं सार्धपञ्चवादने पाठे पठामि ।
(iii) अहं सायं सपादषड्वादने पाठं स्मरामि ।
(iv) पञ्च पलोत्तर सप्तवादने।

2. घटिकाः दृष्ट्वा रिक्तस्थानेषु लिखत, विकासः कदा किं करोति ?
(घड़ियाँ देखकर रिक्तस्थानों पर लिखिए, विकास कब क्या करता है ?)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q12

3. घटिकां दृष्ट्वा लिखत यत् पुनीतः कदा किं किम् आचरति
(घड़ियाँ देखकर लिखिए कि पुनीत कब क्या-क्या करता है ?)
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् घटिका चित्र साहाय्य समय-लेखनम् Q13 

4. अधोलिखितायां समयसारिण्य अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत।

(निम्नलिखित समय सारिणी में अंकों के स्थान पर समय को संस्कृत शब्दों में लिखिए।)
विद्यालये वार्षिकोत्सवस्य समयसारिणी ।
प्रात: (i) 10.00 वादने मुख्यातिथेः आगमनम् ।
प्रात: (ii) 10.30 मुख्यातिथेः स्वागतम् ।
प्रात: (iii) 10.45 प्रधानाचार्येणः । वार्षिक विवरणपाठः। पाट्याभिनय: च।
प्रातः (iv) 11.10 नाट्याभिनयस्य समापन ।
यथानिर्दिष्ट इन शब्दों के रिक्तस्थानों में भरकर सही उत्तर लिखें

5. दीपावलि-उत्सवस्य अधोलिखिते कार्यक्रमे अङ्कानां स्थाने शब्देषु समयं सूचयत।
(दीपावली-उत्सव के निम्नलिखित कार्यक्रम में अंकों के स्थान पर शब्दों में समय सूचित कीजिए !)

(i) सायं 7.30 ……… वादने सामुदायिकभवने आगमनम्।
(ii) सायं 8.00 ……… वादने कवितापाठः ।
(iii) रात्री 9.15 …….. वादने प्रीतभोजनम् ।
(iv) रात्रौ ९.55 ……….. बादने शोनम ।

6. निम्नलिखित कार्यक्रमे अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयम् लिखत्
(निम्नलिखित कार्यक्रम में अंकों के स्थान पर संस्कृत शब्दों में समय में लिखिए।)

(i) 6.15 सायम् अतिथीनाम् आगमनम्, जलपानम्।
(ii) 7.30 सायं काव्यगोष्ठी ।
(iii) 8.45 सायम् भक्तिसङ्गीतम् ।
(iv) 9.10 सायं भोजनम् ।।

7. निम्नलिखिते कार्यक्रमे अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत।
(निम्नलिखित कार्यक्रम में अंकों के स्थान पर संस्कृत शब्दों में समय लिखिए ।)

प्रात: (i) 8.30 वादने प्रार्थना।
प्रात: (ii) 8.45 ध्वजारोहणं, भाषणानि च।
प्रातः (iii) 11.15 जलपानम्।
प्रात: (iv) 11.35 विसर्जनम् ।

8. अधोलिखितवाक्येषु अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत।।
(निम्नलिखित वाक्यों में अंकों के स्थान पर समय को संस्कृत शब्दों में लिखिए।)
(i) प्रात: 9.45 वादने दीपप्रज्चालनम्।
(ii) प्रात: 10.15 वादने अतिथे: स्वागतम्।
(iii) प्रातः 10.30 वादने नाटकाभिनय:।।
(iv) प्रात: 11.00 वादने समापनम्।

उत्तराणि:
4. (i) दश (ii) सार्धदश (iii) पदोनैकादश (iv) दश पलोत्तर एकाद
5. (i) सार्धसप्त (ii) अष्ट (iii) सपादनव (iv) पञ्चपञ्चाशत् पलोतर नव
6. (i) संपादधड् (ii) सार्धसप्त (iii) पादोननव (iv) दश पलोत्तर नव
7. (i) सार्धअष्ट (ii) पदोन्नव (iii) संपादैकादश (iv) पञ्चत्रिंशति पलीत्तर एकाश
8. (i) पादोनदश (ii) संपाददश (iii) सार्धदश (iv) एकादश

 

राजस्थान के प्रमुख किले - पटवारी की तेयारी हेतु

Durgo ke Prakar दुर्गों के प्रकार

दुर्गों के महत्वपूर्ण प्रकार निम्नलिखित हैं :–
1. ओदुक दुर्ग (जल दुर्ग ) – ऐसा दुर्ग जो विशाल जल राशि से गिरा हुआ हो। जैसे -गागरोन दुर्ग
2. गिरी दुर्ग (पर्वत दुर्ग)- यह किसी ऊंचे पर्वत पर स्थित दुर्ग होता है।
राजस्थान के अधिकांश दुर्ग की श्रेणी में आते हैं।
3. धान्वन दुर्ग- मरुभूमि में बना हुआ दुर्ग।
जैसे- जैसलमेर का दुर्ग ।
4. वन दुर्ग :- सघन बीहड़ वन में बना हुआ दुर्ग वन दुर्ग कहलाता है। जैसे- सिवाना का दुर्ग।
5. एरण दुर्ग – ऐसे दुर्ग जिनके मार्ग खाई, कांटों व पत्थरों से दुर्गम हो।
जैसे- चित्तौड़गढ़ , जालोर का दुर्ग ।
6. पारिख दूर्ग – जिनके चारों और गहरी खाई हो।
जैसे – भरतपुर , बीकानेर का जूनागढ़ दुर्ग।
7. पारीध दुर्ग – जिन दुर्गों के चारों और बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो वे दुर्ग पारिध दुर्ग कहलाते हैं । जैसे- चित्तौड़ ,जैसलमेर का दुर्ग ।
8. सैन्य दुर्ग – वह दुर्ग जिसमें युद्ध की व्यूह-रचना में चतुर सैनिक रहते हो ।
9. सहाय दुर्ग – वह दुर्ग जहां शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग निवास करते हैं।
कुछ दुर्ग ऐसे भी हैं जिन्हें दो या अधिक गुर्गों के प्रकार में शामिल किया जा सकता है।
जैसे — चित्तौड़ दुर्ग को गिरी दुर्ग , पारिख दुर्ग, व एरण दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है।
दुर्गों के सभी प्रकारों में ‘सैन्य दुर्गों’ को श्रेष्ठ माना जाता है।
चित्तौड़ दुर्ग सहित राजस्थान के कई दुर्गों को ‘सैन्य दुर्ग’ की श्रेणी में रखा जाता है।

Rajasthan me Durg Shilp राजस्थान में दुर्ग-शिल्प

शुक्र नीति के अनुसार राज्य के सात अंग माने गए हैं, जिनमें ‘दुर्ग’ भी एक है ।
संपूर्ण देश में राजस्थान ऐसा प्रदेश है जहां पर महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश के बाद सर्वाधिक गढ़ और दुर्ग बने हुए हैं।
राजस्थान में दुर्गों के स्थापत्य के विकास का प्रथम उदाहरण ‘कालीबंगा’ की खुदाई में मिलता है ।
राजपूत काल में राजस्थान में बने दुर्गों में – भाटियों का सोनागढ़ , अजयराज चौहान का गढ़बिठली (तारागढ़, अजमेर) तथा कुंभा का मांडलगढ़ आदि प्रसिद्ध है।
तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद दिल्ली में तुर्क – अफगान शासन की स्थापना हुई।
तेरहवीं शताब्दी के बाद बने दुर्ग निर्माण में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया।
पुराने जीर्ण- शीर्ण या खंडहर हो गए दुर्गों का पुनः निर्माण किया गया ।
जैसे– कुंभा ने आबू में अचलगढ़ दुर्ग वह चित्तौड़ दुर्ग का पुन:र्निर्माण करवाया ।
जब मुगलों के साथ राजपूत शासकों के मधुर संबंध बने तब राजपूत शासक समतल मैदान में नगर दुर्गों का निर्माण करने लगे ।
जैसे – जयपुर , बीकानेर, भरतपुर आदि।
क्योंकि राजस्थान के राजपूत शासकों के लिए यह स्थिरता व शांति का काल था ।
* राजस्थान की 6 दुर्गों — आमेर महल,
गागरोन दुर्ग,
कुंभलगढ़ दुर्ग ,
जैसलमेर दुर्ग,
रणथंबोर दुर्ग ,
चित्तौड़गढ़ दुर्ग को जून 2013 में ‘नोमपेन्ह’ में हुई ‘वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी’ की बैठक में ‘यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ की सूची में शामिल किया गया।
राजस्थान के दुर्गों में प्रमुख विशेषताओं – जैसे सुदृढ़ प्राचीन , अभेद्य बुर्जें , किले के चारों तरफ गहरी खाई, या पारीखा, गुप्त प्रवेश द्वार तथा सुरंग, किले के भीतर सिलहखाना(शस्त्रागार) , जलाशय अथवा पानी के टांके, राजाप्रसाद तथा सैनिकों के आवास गृह, यहां के दुर्गों में मिलते हैं।

Kumbhalgarh ka kila कुम्भलगढ़ का किला

कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद)*
कुंभलगढ़ एक गिरी दुर्ग है ।
यह दुर्ग महाराणा कुंभा द्वारा दुर्ग – स्थापत्य के प्राचीन भारतीय आदर्शों के अनुरूप बना है।
कुंभलगढ़ दुर्ग मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गांव के समीप स्थित है।
कुंभलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है ।
दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मंडन था।
यह दुर्ग छत्तीस (36) किलोमीटर लंबे परकोटे से घिरा हुआ है, जो अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड में दर्ज हैं।
सुरक्षा दीवार पर एक साथ 8 घुड़सवार चल सकते हैं ।
कर्नल टॉड ने कुंभलगढ़ दुर्ग की तुलना सुदृढ़ प्राचीरो , बुर्जो, कंगूरों के विचारों से ‘एट्रस्कन वास्तु’ से की है।
कुंभलगढ़ दुर्ग के प्रसिद्ध स्मारक —
झालीबाव बावड़ी , कुंभस्वामी विष्णु मंदिर,
झालीरानी का मालिया , मामादेव तालाब,
उड़ना राजकुमार (पृथ्वीराज राठौड़) की छतरी,
कुंभलगढ़ दुर्ग में ‘उदय सिंह’ का राज्याभिषेक हुआ, तथा ‘राणा प्रताप’ का जन्म हुआ।
दुर्ग के ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास स्थल है , जिसे ‘कटारगढ़’ कहते हैं ।

 

lohagarh ka kila लोहागढ़ का किला

लोहागढ़ का किला (भरतपुर)
यह किला अजेयता व सुदृढ़ता के लिए विख्यात है।
भरतपुर के जाट राजाओं की वीरता और शौर्य गाथा का प्रतीक है यह किला।
इस किले का निर्माण – 1733 ई. में जाट शासक महाराजा सूरजमल द्वारा किया गया।
लोहागढ़ को पूर्व में स्थित एक कच्ची गढ़ी को विकसित कर वर्तमान स्वरूप दिया गया।
किले के प्रवेश द्वार पर अष्टधातु से निर्मित कलात्मक दरवाजा आज भी वीरता का बखान करता है।
यह अष्टधातु से निर्मित दरवाजा महाराजा जवाहरसिंह 1765 ई. में दिल्ली से विजय करके लाए थे ।
इस किले की अभेद्यता का कारण है – इसकी चौड़ी दीवारें । इस किले की बाहरी दीवारें मिट्टी की बनी हुई है ।
किले की मिट्टी की दीवारों के चारों और गहरी खाई स्थित है ।
इस खाई में मोती झील से सुजान गंगा नहर का पानी भरा जाता था।
लार्ड लेक ने इस किले पर 5 बार चढ़ाई की 1805 में परंतु वह असफल रहे।
किले के प्रमुख स्मारक / महल — किशोरी महल, जवाहर बुर्ज, कोठी खास, वजीर की कोठी , दादी मां का महल , गंगा मंदिर , लक्ष्मण मंदिर इत्यादि।

jaisalmer ka kila जैसलमेर का किला

राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर जिला कहलाता है।
जैसलमेर के किले को ‘सोनार का किला’ भी कहा जाता है।
यह किला ‘त्रिकूट पहाड़ी’ पर स्थित है, जो कि पीले पत्थरों से बना हुआ किला है ।
इस किले का निर्माण – 1155 ई. में भाटी शासक राव जैसल ने करवाया था ।
दुर्ग के चारों तरफ विशाल मरुस्थल फैला हुआ है ।
इस दुर्ग के लिए यह कहावत प्रचलित है कि “यहां पत्थर के पैर , लोहे का शरीर , व काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है।”
दूर से देखने पर यह किला” पहाड़ी पर लंगर डाले हुए एक जहाज की जैसा प्रतीत होता है।”
इस किले में बने प्राचीन व भव्य जैन मंदिर (पार्श्वनाथ और ऋषभदेव) मंदिर आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों की बराबरी करते हैं।
इस किले में स्थित प्रमुख महल — रंग महल , मोती महल , गजविलास और जवाहर विलास प्रमुख है ।
इस किले की प्रसिद्धि का एक प्रमुख कारण यहां के दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों के संग्रहालय है।

jalore ka kila जालौर का किला

यह दुर्ग ‘सोनगिरी पहाड़ी’ पर स्थित है।
यह किला ‘सुकड़ी नदी’ के किनारे बना हुआ है।
शिलालेखों में जालौर का नाम – ‘जबालिपुर’
और जालौर किले का नाम ‘सुवर्णगिरी’ मिलता है।
किले का निर्माण आठवीं सदी में प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया।
किले में निर्मित ‘तोपखाना मस्जिद’ जो कि पहले परमार शासक ‘भोज’ द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी और वह बहुत आकर्षक है।
यहां का प्रसिद्ध शासक – कान्हड़दे चौहान (1305 1311 )ई. रहा था।
कान्हड़दे चौहान , अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुऐ थे।

jaigarh ka kila जयगढ़ का किला

जयगढ़ (आमेर, जयपुर )
इस किले में तोपें ढालने का विशाल कारखाना था।
मध्यकालीन भारत की प्रमुख सैनिक इमारतों में यह है जयगढ़ दुर्ग प्रमुख था।
एशिया की सबसे बड़ी तोप ‘जयबाण’ कहां स्थित है।
यह दुर्ग अपने विशाल ‘पानी के टांकों के लिए भी जाना जाता है।
इस किले का निर्माण व विस्तार में कछवाहा शासकों का योगदान रहा।
जयगढ़ दुर्ग को वर्तमान स्वरूप सवाई जयसिंह ने प्रदान किया ।
जयगढ़ दुर्ग को ‘रहस्यमय दुर्ग’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर कई गुप्त सुरंगें है।

gagron ka kila गागरोन का किला

गागरोन का किला (झालावाड़)
यह एक जल दुर्ग है।
यह दुर्ग कालीसिंध और आहू नदी के संगम पर स्थित है ।
किले का निर्माण 11 वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा किया गया ।
और डोड परमारों के नाम पर यह किला ‘डोडगढ़’ और ‘धूलरगढ़’ कहलाया ।
उसके बाद यह दुर्ग ‘खींची चौहानों’ के अधिकार में आ गया।
यह किला ‘अचलदास खींचीं’ की वीरता की याद दिलाता है ।
अचलदास खींची 1423 में मांडू के सुल्तान हुशंगशाह से लड़ते हुआ वीरगति को प्राप्त हुऐ ।
किले में स्थित प्रमुख स्मारक — संत पीपा की छतरी , सूफी संत मिट्ठे साहब (संत हमीदुद्दीन चिश्ती) की दरगाह , औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा प्रसिद्ध है।

 

akbar ka kila अकबर का किला

अकबर का दुर्ग (अजमेर)
इस दुर्ग का निर्माण अकबर ने 1570 ई. में गुजरात विजय की स्मृति में करवाया था।
इस दुर्ग को ‘अकबर का दौलतखाना’ तथा ‘अकबर की मैगजीन’ कहा जाता है ।
राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जो कि ‘मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति’ से बनवाया गया था।
इसी दुर्ग में 1576 ई. में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को अंतिम रूप दिया गया था।
ब्रिटिश राजदूत ‘सर टॉमस रो’ के भारत आगमन पर मुगल सम्राट जहाँगीर को अपना परिचय पत्र भी इसी दुर्ग में दिया गया था।
अंग्रेजों ने 1801 ईस्वी में इस दुर्ग पर अधिकार किया था ।
अंत में अंग्रेजों ने इस दुर्ग को अपना शस्त्रागार (मैगजीन) बना दिया ।

Churu ka Kila चूरू का किला

किले का निर्माण 1739 ईस्वी में ठाकुर कुशाल सिंह द्वारा किया गया।
अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) ईसवी के विद्रोह में यहां पर अंग्रेजों का विरोध ठाकुर शिवसिंह ने किया था ।
शिव सिंह द्वारा विरोध करने पर अंग्रेजों द्वारा बीकानेर राज्य की सेना लेकर चूरू दुर्ग को घेरा गया तथा तोपों से गोले बरसाए गए ।
तो फिर चुरू दुर्ग से भी गोले बरसाए गए तथा गोलें खत्म होने पर तोपों से ‘चांदी के गोले’ शत्रु सेना पर दागे गए।
उस पर शत्रु सेना हैरान हो गई, तथा उन्होंने जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए दुर्ग से घेरा उठा लिया।

 

Siwana Durg सिवाणा दुर्ग

सिवाना दुर्ग स्थित है — बाड़मेर में ‘छप्पन के पहाड़’ पर स्थित है।
सिवाना दुर्ग को ‘ अणखलों सिवाणों ‘ दुर्ग कहा जाता है।
दुर्ग की स्थापना 954 ई. में परमार वंशीय ‘वीरनारायण’ ने की।
अलाउद्दीन खिलजी के काल में यह दुर्ग जालौर के राजा कान्हणदे के भतीजे शीतलदेव के अधिकार में था।
अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया था।
खिलजी द्वारा दुर्ग पर किए गए आक्रमण में वीर शीतलदेव वीरगति को प्राप्त हुए थे।
खिलजी द्वारा दुर्ग पर अधिकार कर लिया गया था।
सिवाणा दुर्ग संकटकाल में मारवाड़ (जोधपुर) राजाओं की शरणस्थली रहा है।
सिवाणा दुर्ग में राव मालदेव ने आश्रय लिया था ।
‘गिरी सुमेल का युद्ध’ राव मालदेव और शेरशाह सूरी के मध्य हुआ था।
शेरशाह की सेना द्वारा युद्ध के बाद राव मालदेव का पीछा किया गया था।
सिवाणा दुर्ग को केंद्र बनाकर मुगलों के विरुद्ध रावचंद्रसेन ने संघर्ष किया था।

Mehrangarh ka Kila मेहरानगढ़ का किला

मेहरानगढ़ (जोधपुर)
मेहरानगढ़ की स्थापना 1459 में राव जोधा द्वारा की गई ।
मेहरानगढ़ जोधपुर नगर की उत्तरी पहाड़ी चिड़िया टूंक पर स्थित है।
यह एक गिरी दुर्ग है।
इस किले को ‘मयूरध्वजगढ़’ और ‘गढ़चिंतामणि’ भी कहा जाता है।
मेहरानगढ़ के महल राजपूत – स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण तथा वह महल लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है ।
यह दुर्ग अपनी विशालता के कारण मेहरानगढ़ कहलाया – ” गढ़ बण्यो मेहराण”
इस दुर्ग के प्रमुख महल — मोती महल, फतेह महल, फूल महल, सिंगार महल।
दुर्ग में स्थित ‘पुस्तक प्रकाश’ पुस्तकालय महाराजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया जो कि वर्तमान में भी कार्यरत है।
किले में स्थित प्राचीन तोपें निम्न है , जो कि लंबी दूरी तक मार करने वाली है —
जैसे — किलकिला , गजक , शंभूबाण, गजनीखान, जमजमा , कड़कबिजली , नुसरत , गुब्बार , धूड़धाणीद, बिच्छू बाण , मीर मख्श , रहस्य कला।
दूर्ग परिसर में स्थित प्राचीन मंदिर — चामुंडा माता मंदिर , मुरली मनोहर मंदिर, तथा आनंद के प्राचीन मंदिर स्थित है ।
दूर्ग की प्रमुख इमारतें — तखत विलास , चोखेलाव महल , बिचला महल , सिणगार चौकी ( श्रृंगार चौकी ) आदि।

Taragarh ka Kila तारागढ़ का किला (बूंदी)

बूंदी का तारागढ़ किला ‘गिरी दुर्ग’ का एक बेहतरीन उदाहरण है ।
पर्वत की ऊंची चोटी पर स्थित होने के कारण यह दुर्ग धरती से आकाश के तारे के समान दिखाई देता है , और इसी के कारण ‘तारागढ़’ नाम से यह किला प्रसिद्ध है ।
दुर्ग का निर्माण 14 वीं शताब्दी में राव बरसिंह ने करवाया था।
यह दुर्ग मेवाड़ , मालवा व गुजरात की ओर से संभावित आक्रमणों से बूंदी की रक्षा करने के लिए बनवाया गया था।
‘वीरविनोद रचना के अनुसार बूंदी विजय करने के प्रयास में महाराणा क्षेत्रसिंह (1364 – 1382 ई.) मारे गए थे ।
इनके पुत्र महाराणा लाखा भी काफी प्रयत्नों के बाद बूंदी पर अधिकार नहीं कर सके थे।
तो फिर महाराणा लाखा ने ‘मिट्टी का नकली दुर्ग’ बनवाया और अपनी प्रतिज्ञा को पूरी की ।
इस नकली दुर्ग की रक्षा के लिए कुंभा हाड़ा ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी।
तारागढ़ दुर्ग में बने ‘राजमहल’ अपनी स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण है ।
बूंदी के राजमहलों की प्रमुख विशेषता – उनके भीतर अनेक दुर्लभ व जीवंत भित्तिचित्रों के रूप में कला का अनमोल खजाना विद्यमान है।
बूंदी चित्रशैली का सुंदर उदाहरण — महाराव उम्मेदसिंह के शासन काल में निर्मित ‘चित्रशाला’ है।
बूंदी दुर्ग के प्रमुख भवन —
84 खंभों की छतरी , शिकार बुर्ज
नवल सागर सरोवर, फूल सागर
गर्भ – गुंजन तोप इत्यादि।

bhainsrorgarh ka kila भैंसरोडगढ़ का किला

भैंसरोडगढ़ का किला (चित्तौड़गढ़)
यह जलदुर्ग कहलाता है ।
यह दुर्ग चंबल व बामनी नदियों के संगम पर स्थित है ।
यह दुर्ग तीनों और से पानी से घिरा हुआ है ।
कर्नल टॉड के अनुसार — इस किले का निर्माण भैंसाशाह व्यापारी तथा रोड़ा चारण द्वारा पर्वतीय लुटेरों से अपने व्यापारिक काफिले की सुरक्षा हेतु करवाया गया ।
इस किले को “राजस्थान का वैल्लोर” कहा जाता है।
यह किला डोड शाखा के परमारों, राठौड़ों, शक्तावतों और चुंडावतों के अधिकार में रहने के बाद भैंसरोडगढ़ ‘हाड़ाओं’ को मिला था।
यह किला अधिकांशत: ‘ मेवाड़ के अधिकार ‘ में ही रहा।

 

Lalgarh ka kila लालगढ़ का किला

लालगढ़ दुर्ग (बीकानेर)
अन्य नाम – ‘जूनागढ़ दुर्ग’
दुर्ग की नींव – महाराणा रायसिंह द्वारा 1589 ई. में रखी गई ।
दुर्ग की प्राचीर व अधिकतम निर्माण लाल पत्थरों से हुआ है ।
दुर्ग में संस्थापक रायसिंह की प्रशस्ति ‘आंतरिक द्वार सूरजपोल दरवाजे’ पर उत्कीर्ण हैं ।
दुर्ग में चित्तौड़ शाके में वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरों ‘जयमल मेड़तिया’ और ‘फत्ता सिसोदिया’ की हाथी पर सवार मूर्तियाँ स्थापित है।
दुर्ग में स्थित प्रमुख स्मारक/भवन —
रतन निवास, सरदार निवास, रंग महल, चीनी बुर्ज, कर्ण महल , सुनहरी बुर्ज , विक्रम विलास, अनूप महल, छत्र निवास, लाल निवास इत्यादि ।

Ranthambore ka Kila रणथम्भौर का किला

दुर्ग का निर्माण – आठवीं शताब्दी में अजमेर के चौहान शासकों द्वारा किया गया ।
एक मान्यता के अनुसार रणथंभौर दुर्ग का निर्माण ‘रणथान देव चौहान’ ने करवाया ।
यह दुर्ग राणा हम्मीर देव चौहान के साथ साहस का मूक गवाह है ।
राणा हम्मीर देव का बलिदान 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए हुआ था।

रणथंभौर दुर्ग में गिरी दुर्ग और वन दूर्ग दोनों की विशेषताएं विद्यमान है।
अबुल फजल ने रणथम्भौर दुर्ग की सुदृढ़ नैसर्गिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए लिखा है कि – ” यह दुर्ग बख्तरबंद है।”
दुर्ग के प्रसिद्ध भवन/ स्मारक :–
हम्मीर महल , रानी महल ,
हम्मीर कीकचहरी , सुपारी महल,
जोगी महल , 32 खंभों की छतरी,
पीर सदरूद्दीन की दरगाह तथा
गणेश मंदिर इत्यादि प्रसिद्ध है।

 Chittorgarh ka Kila चित्तौड़गढ़ का किला

यह किला ‘राजस्थान का गौरव’ कहलाता है।
राजस्थान के गिरी दुर्गो(पर्वत दुर्ग) में यह दुर्ग सबसे प्राचीन व प्रमुख दुर्ग है।
प्राचीन व मध्य काल में इस किले का विशेष सामरिक महत्व था।
यह किला दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर स्थित है ।
यह किला मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने बनवाया।
चित्रांगद मौर्य ने अपने ही नाम पर इस किले का नाम चित्रकूट रखा।
मेवाड़ का इतिहास ग्रंथ ‘वीरविनोद’ है ।
मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल थे ।
अंतिम मौर्य शासक – मानमोरी था।
बप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी के लगभग मानमोरी को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार किया था ।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग का नाम ‘खिज्राबाद’ रखा था ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग ‘मेसा पठार’ पर स्थित है।
चित्तौड़गढ़ का दुर्ग “सभी किलो का सिरमौर” कहलाता है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उक्ति है – “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया”
चित्तौड़ किले में इतिहास में 3 साके प्रसिद्ध है :–
पहला साका — 1303ई. में अलाउद्दीन खिलजी के समय हुआ।
दूसरा साका — 1534 ईसवी में गुजरात शासक बहादुर शाह के समय हुआ।
तीसरा शाखा — 1567 ईस्वी में अकबर के आक्रमण के समय हुआ।
चित्तौड़ किला रानी पद्मिनी के जौहर के लिए, वीर जयमल राठौड़ फत्ता सिसोदिया के पराक्रम व बलिदान के लिए प्रसिद्ध है ।
किले में सात अभेद्य प्रवेश द्वार स्थित है।
किले का सुदृढ़ व घुमावदार प्राचीर उन्नत व विशाल बुर्जे, लंबा व टेड़ा- मेड़ा सर्किल मार्ग चित्तौड़गढ़ दुर्ग को एक विकट रूप देता है।
चित्तौड़ दुर्ग के प्रसिद्ध भवन :–
तुलजा माता का मंदिर,
नवलखा भंडार , भामाशाह की हवेली ,
कुंभा निर्मित (विजय स्तंभ),
रानी पद्मिनी के महल, गोरा बादल के महल, चित्रांग मोरी तालाब, श्रृंगार चवरी प्रासाद, त्रिपोलिया दरवाजा, कुंभ श्याम मंदिर ,
जैन कीर्ति स्तंभ प्रसिद्ध है है

Taragarh ka Kila Ajmer तारागढ़ का किला (अजमेर)

यह किला अजमेर जिला मुख्यालय पर स्थित है।
अरावली की पहाड़ियों पर स्थित यह दुर्ग वर्तमान में खंडित दशा में है।
इस दुर्ग के अन्य नाम ‘गढ़बिठली’ और ‘अजयमेरू’ है।
शाहजहां के शासनकाल में इस दुर्ग का अध्यक्ष विट्ठलदास गौड़ ( दुर्गाध्यक्ष) था ।
कर्नल टॉड के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक अजयपाल द्वारा करवाया गया था।
तारागढ़ की प्राचीर में 14 विशाल बुर्जे स्थित है।
इनमें प्रमुख बुर्जे हैं —- घूंघट , गूगड़ी तथा फूटी बुर्ज, बांँदरा बुर्ज , इमली बुर्ज, खिड़की और फतेहपुर बुर्ज प्रमुख है।
1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक द्वारा इस ग्रुप को देखने पर उनके मुंह से यह निकला कि ” ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर।”

Nahargarh ka kila नाहरगढ़ का किला (जयपुर)

यह किला जयपुर में अरावली पर्वतमाला की पहाड़ी पर स्थित है।
इस किले का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा मराठा आक्रमणों से बचाव के लिए करवाया गया।
इस किले को ‘सुदर्शनगढ़’ भी कहा जाता है।
इस किले का नाहरगढ़ नाम ‘नाहरसिंह भोमिया’ के नाम पर पड़ा।
इस किले के निर्माण के समय जुझार नाहरसिंह ने विघ्न उपस्थित किया था।
विघ्न उपस्थित करने पर नाहरसिंह को अन्यत्र कहीं जाने के लिए तांत्रिक रत्नाकर पौण्डरीक ने राजी किया था ।
तांत्रिक ने नाहरसिंह का स्थान “अंबागढ़ के निकट एक चोबुर्जी गढ़ी में, जहां वह आज भी लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं, वहां स्थापित किया था।
नाहरगढ़ में सवाई जयसिंह ने अपनी 9 पासवानों के लिए एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया था

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 10वीं व 12वीं दोनों की परीक्षाए एक साथ 6 मार्च से होगी शुरू

बोर्ड परीक्षा की तारीखों में किया गया बदलाव, 10वीं-12वीं की मुख्य परीक्षा अब एक साथ 6 मार्च से होंगी शुरू, राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (...