Saturday, September 24, 2022

कंप्यूटर: एक अद्भुत भेंट

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कंप्यूटर: एक अद्भुत भेंट

प्रस्तावना

तकनीकी उन्नति के आधुनिक संसार में, हमारे लिये विज्ञान के द्वारा कंप्यूटर एक अद्भुत भेंट है। इसने लोगों की जीवन शैली और आदर्श को बदल दिया है। कोई भी बिना कंप्यूटर के अपने जीवन की कल्पना भी नही कर सकता है क्योंकि यह कम समय बहुत से कार्यों को चुटकी में पूरा कर देता है। विकसित देशों के विकास में कंप्यूटर का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। ये केवल स्टोरेज और प्रौद्योगिकी डिवाइस नहीं है बल्कि ये किसी फरिश्ते की तरह है जो कुछ भी कर सकता है। कई लोगों द्वारा इसे मनोरंजन और संचार के लिये भी इस्तेमाल किया जाता है।

कम्प्यूटर क्या है?

कम्प्यूटर एक यांत्रिक मशीन है, जिसमें अनेक प्रकार के गणित के सूत्रों एवं तथ्यों के आधार पर कार्य करता है। कम्प्यूटर बेहद ही कम समय में गणना करके तथ्यों को अपनी स्क्रीन पर दिखा देता है। कंप्यूटर आधुनिक युग के सबसे महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक है। आधुनिक युग को कंप्यूटर युग भी कहा जाता है। कंप्यूटर एक ऐसे यांत्रिक रचना का रूपात्मक , समन्वयात्मक योग और गुणात्मक समन्वय है जो तेज गति से कम-से-कम समय में ज्यादा-से-ज्यादा कार्य कर सकता है।


कम्प्यूटर के कार्य

कम्प्यूटर का मुख्य कार्य तो सूचनाओं को सहेजना और साझा करना ही है परन्तु आज कम्प्यूटर की सहायता से कई जटिल कार्य भी किये जाते हैं। यह विभिन्न कार्यों को तेज़ी से और अधिक सटीक रूप से पूरा करता है। ये कम समय लेकर ज्यादा से ज्यादा कार्य को संभव बनाता है। ये कार्य स्थल पर व्यक्ति के श्रम को कम कर देता है अर्थात कम समय और कम श्रम शक्ति पर उच्च स्तर का परिणाम प्रदान करता है।

ऊर्जा की बचत

ई-मेल, विडियो चैट, का उपयोग कर हम काफी कम समय में अपने मित्रों, रिश्तेदारों, माता-पिता या किसी भी व्यक्ति से जुड़ सकते है। कंप्यूटर में इंटरनेट का इस्तेमाल कर हम किसी भी विषय की जानकारी खोज या प्राप्त कर सकते है जो हमारे प्रोजेक्ट या शिक्षा संबंधी कार्यों के लिये मददगार हो। ये व्यापारिक लेनदेन के लिये भी बेहद आसान और सुरक्षित है। इसमें डेटा स्टोरेज की सुविधा की वजह से सरकारी, गैर-सरकारी, स्कूल, कॉलेज, आदि सभी जगहों पर कागजों की बचत होती है। इसके साथ ही कंमप्यूर द्वारा हम घर से ही ऑनलाइन खरीदारी, बिल जमा करना आदि जैसे कार्य कर सकते है, जिससे की हमारे समय तथा ऊर्जा दोनों की ही बचत होती है। जोंकि हमें इस बात का अहसास दिलाता है कि हम कमप्यूटर द्वारा उन कार्यों को भी तेजी से पूरा कर सकते हैं जोकि असंभव नही है लेकिन आसान भी नही है।

निष्कर्ष

अपने पेशेवर जीवन में विद्यार्थियों की सहायता के साथ ही उनके कौशल को विकसित करने के लिये स्कूल, कॉलेज, और दूसरे शिक्षण संस्थानों में भारत सरकार द्वारा कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया है। आज के आधुनिक समय की नौकरियों के लिये कंप्यूटर का जानकारी होना लगभग अनिवार्य हो चुका है। इसमें दक्ष होने के लिये उच्च शिक्षा में नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेशन, हार्डवेयर मेंटेनेंस, सॉफ्टवेयर इंस्टॉलेशन आदि विषय काफी लोकप्रिय है।

कंप्यूटर पर निबंध (Computer Essay in Hindi)

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कंप्यूटर पर निबंध (Computer Essay in Hindi)

कंप्यूटर

कम्प्यूटर आधुनिक तकनीक की एक महान खोज है। ये एक सामान्य मशीन है जो अपनी मेमोरी में ढेर सारे डाटा को सुरक्षित रखने की क्षमता रखती है। ये इनपुट (जैसे की-बोर्ड) और आउटपुट(प्रिंटर) के इस्तेमाल से काम करता है। ये इस्तेमाल करने में बेहद आसान है इसलिये कम उम्र के बच्चे भी इसे काफी आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। ये बहुत ही भरोसेमंद है जिसे हम अपने साथ रख सकते है और कहीं भी और कभी भी प्रयोग कर सकते है। इससे हम अपने पुराने डेटा में बदलाव के साथ नया डेटा भी बना सकते है।

कंप्यूटर: एक नवीनतम तकनीक

प्रस्तावना

कंप्यूटर एक नवीनतम तकनीक है जो ज्यादातर जगहों पर इस्तेमाल किया जाता है। ये कम समय लेकर ज्यादा से ज्यादा कार्य को संभव बनाता है। ये कार्य स्थल पर व्यक्ति के श्रम को कम कर देता है अर्थात कम समय और कम श्रम शक्ति उच्च स्तर का परिणाम प्रदान करता है। आधुनिक समय में बिना कंप्यूटर के जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है।

हमलोग कंप्यूटर में इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते है जो बेहद कम समय में जरूरी जानकारी उपलब्ध कराता है। व्यक्ति के जीवन में इसका बड़ा योगदान है क्योंकि इसका प्रयोग अब हर क्षेत्र में है और ये हर क्षण हमारे सहायक के रुप में मौजूद रहता है। पहले के समय के कंप्यूटर कम प्रभावशाली तथा कार्य सीमित थे जबकि आधुनिक कंप्यूटर बेहद क्षमतावान, संभालने में आसान तथा ज्यादा से ज्यादा कार्यों को संपादित कर सकने वाले है, जिसके कारण यह लोगों में इतने लोकप्रिय होते जा रहे है।

कंप्यूटर

जिंदगी हुआ आसान

भावी पीढ़ी के कंप्यूटर और प्रभावी होंगे साथ ही कार्यात्मक क्षमता भी बढ़ जाएगी। इसने हम सबके जीवन को आसान बना दिया है। इसके माध्यम से हम कुछ भी आसानी से सीख सकते है तथा अपने हुनर को और भी ज्यादे निखार सकते है। हम लोग चुटकियों में किसी भी सेवा, उत्पाद या दूसरी चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। कंप्यूटर में लगे इंटरनेट के द्वारा हम कुछ भी खरीदारी कर सकते है जिससे घर में बैठे-बैठे मुफ्त डिलिवरी प्राप्त कर सकते है। इससे हमारे स्कूल प्रोजेक्ट में भी खूब मदद मिलती है।

निष्कर्ष

इंसानों के लिये कंप्यूटर के सैकड़ों फायदे है तो साइबर अपराध, अश्लील वेबसाइट, जैसे नुकसान भी शामिल है जिसकी पहुँच हमारे बच्चों और विद्यार्थियों तक आसानी से हो जाती है। हालांकि कुछ उपायों अपनाकर हम इसके कई नकारात्मक प्रभावों से बच भी सकते हैं।


निबंध 2 (400 शब्द) - कंप्यूटर का उपयोग व महत्व

प्रस्तावना

पूरे मानव बिरादरी के लिये विज्ञान का अनोखा और पथप्रदर्शन करने वाला उपहार है कंप्यूटर। ये किसी भी प्रकृति का कार्य कर सकता है। किसी के भी द्वारा इसे संभालना सरल है और सीखने के लिये बहुत कम समय लगता है। अपने सुगमता और कार्य क्षमता के कारण इसका प्रयोग व्यापक तौर पर होता है जैसे- ऑफिस, बैंक, होटल, शिक्षण संस्थान, स्कूल, कॉलेज, दुकान, उद्योग आदि। कई लोग अपने बच्चों के लिये लैपटॉप और डेस्कटॉप खरीदते है जिससे अपनी पढ़ाई से संबंधित कार्य और कंप्यूटरीकृत विडियों गेमों का आनंद ले सकें।

विद्यार्थी के द्वारा कंप्यूटर का उपयोग

कंप्यूटर एक बड़ा शब्दकोश और बड़ा स्टोरेज डिवाइस है जो किसी भी तरह के डेटा को सुरक्षित रखने के लिये है जैसे- कोई भी जानकारी, पढ़ाई से संबंधित सामग्री, प्रोजेक्ट, फोटो, विडियो, गाना, खेल, आदि।

ये एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो गणना करने तथा बड़ी समस्याओं को सुलझाने में दक्ष है। ये हमारे कौशल को बढ़ाने में और आसानी से जानकारी प्राप्त करने में भी हमारी मदद करता है। ये एक डेटा आधारित मशीन है। ये हमें कई सारे टूल्स उपलब्ध कराता है जैसे- टेक्स्ट टूल्स, पेंट टूल्स आदि जो बच्चों के लिये बहुत फायदेमंद है और विद्यार्थी इसे अपमे स्कूली तथा प्रोजेक्ट कार्यों में काफी प्रभावपूर्ण रुप में उपयोग कर सकते हैं।

कंप्यूटर का महत्व

कार्य स्थल, शिक्षा के क्षेत्र में तथा निजी उपयोग के लिए कंप्यूटर का बहुत ही महत्व है। पुराने समय में हम सारे काम अपने हाथ से करते थे लेकिन आज कंप्यूटर की सहायता से खातों के प्रबंधन, डेटाबेस बनाने, आवश्यक जानकारी संग्रहीत करने जैसे विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है। आजकल हर कोई इंटरनेट के जरिये कंप्यूटर पर काम करना आसान मानता है। वास्तव में आज के समय कंप्यूटर हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

निष्कर्ष

हम इसका प्रयोग बड़े और छोटे गणितीय गणनाओं के लिये सटीक ढंग से कर सकते है। इसका उपयोग मौसम की भविष्यवाणी, किताब, न्यूज पेपर, डाइग्नोजिंग बिमारी की छपाई आदि के लिये किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल दुनिया के किसी भी कोने से ऑनलाइन रेलवे आरक्षण, होटल या रेस्टोरेंट की बुकिंग के लिये किया जाता है। बड़ी एमएनसी कंपनियों में भी इसका प्रयोग व्यापक है जिसमें खाता, इनवॉइस, पे-रोल, स्टॉक नियंत्रण आदि के लिये होता है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध भारत में बेरोजगारी गंभीर समस्या।

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भारत में बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध
भारत में बेरोजगारी गंभीर समस्या।

भारत में अन्य समस्याओं की तरह बेरोज़गारी एक प्रमुख और गंभीर समस्या के रूप में उभर कर आयी है। बेरोजगारी का अर्थ है योग्यता और प्रतिभाओं के बावजूद रोजगार के अवसर पाने में नाकामयाब होना। हमारे देश में लाखो युवको के पास डिग्री और अच्छी शिक्षा है फिर भी किसी कारणवश उन्हें नौकरी नहीं मिल पाता है। बेरोजगार व्यक्ति यानी व्यक्ति हर मुमकिन या नामुमकिन कार्य करना चाहता है मगर दुर्भाग्यवश  उसे नौकरी नहीं मिल पाती है।

हमारे देश में बेरोजगार जैसी समस्याएं निरंतर ज़ोर पकड़ रही है। हमारे देश में नौजवान के पास उच्च शिक्षा संबंधित डिग्रीयां होने के बावजूद उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे है। हर रोज़ युवक इंटरव्यू की लम्बी कतारों में खड़े होते है और आये दिन कई दफ्तरों के चक्कर लगाते है ताकि उन्हें एक बेहतर नौकरी मिल जाए। कुछ एक को छोड़कर कई युवको को नौकरी ना मिलने के कारण अपने हाथ मलने पड़ते है।

बेरोजगारी के प्रकार

ओपन unemployment – यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ श्रम बल के एक बड़े हिस्से को नौकरी नहीं मिलती है जिससे उन्हें नियमित आय मिल सके। यह ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ लोग काम करने के लिए इच्छुक है मगर उन्हें कार्य नहीं मिल पाता है। वह लोग काम करने में सक्षम है पर रोजगार नहीं मिल पाता है।

प्रछन्न बेरोजगारी -यह विशेष रूप से भारतीय कृषि परिदृश्य को प्रभावित करता है। इस मामले में आवश्यकता से अधिक श्रमिक खेत पर लगे हुए है , जहाँ सभी वास्तव में उत्पादक बनाने में योगदान नहीं कर रहे है और कई श्रमिकों की उत्पादकता शून्य है। यह तब होता है जब लगभग पूरा परिवार कृषि उत्पादन में संलग्न है। कुछ लोगो के निष्कासन से उत्पादन की मात्रा कम नहीं होती। जनसँख्या में तेज़ी से वृद्धि और वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी के कारण कृषि में भीड़भाड़ को भारत में प्रछन्न बेरोजगारी के मुख्या कारणों के रूप में देखा जा सकता है।

मौसमी बेरोज़गारी -यह बेरोजगारी है जो वर्ष के कुछ मौसमो के दौरान होती है। कुछ उद्योग और व्यवसाय जैसे कृषि और बर्फ कारखानों आदि में उत्पादन गतिविधियां केवल कुछ मौसमो में होती है। इसलिए एक वर्ष में एक निश्चित अवधि के लिए रोजगार प्रदान करते है। लेकिन बाकी महीनो में इस प्रकार की गतिविधियों में लगे लोग बेरोजगार हो जाते है।

चक्रीय बेरोजगारी -यह नियमित अंतराल पर व्यापार चक्रो के कारण होता है। आमतौर पर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाएं व्यापार चक्र के अधीन होती है और व्यवसायिक गतिविधियों में गिरावट आने से बेरोजगारी बढ़ती है।

शिक्षित बेरोजगारी -सबसे भयावह तरह की बेरोजगार है जब शिक्षित युवक अपने शिक्षा के अनुरूप उचित रोजगार पाने में असमर्थ है। अच्छे शिक्षित युवक तो है लेकिन उपलब्ध नौकरियों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि नहीं हो रही है।

आद्योगिक बेरोजगारी -यह अनपढ़ व्यक्ति जो शहरी क्षेत्रों में कारखानों में कार्य करने में इच्छुक और सक्षम है लकिन इस श्रेणी में कार्य नहीं पा सकते है।

भारत में दिन प्रतिदिन बेरोज़गारी की वृद्धि के कई कारण है। सबसे प्रमुख है जनसंख्या वृद्धि। भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है। जनसंख्या वृद्धि एक मुख्या समस्या है जो बेरोज़गारी के लिए 100 फीसदी जिम्मेदार है। जितनी ज़्यादा जनसंख्या होगी उतनी ही रोजगार के स्तर पर मुकाबला होगा जिसमे ज़्यादातर लोगो को रोजगार के अवसर नहीं मिलेंगे अर्थात नौकरी के पोस्ट यानी पद  कम होंगे और उम्मीदवार ज़्यादा होंगे और गिने चुने लोगो को ही योग्यता अनुसार नौकरी मिलेगी।

आद्योगिक क्षेत्र में बढ़ता मशीनीकरण भी बेरोजगारी का दूसरा प्रमुख कारण है जिसके अंतर्गत एक मशीन चुटकी भर में कई लोगो के काम कर देता है जिससे कई लोग बेरोज़गार के दर पर आकर खड़े हो जाते है। मशीने कम वक़्त में जल्दी कार्य कर सकता है। इसी वजह से लोगो को रोजगार के अवसर मिलना बिलकुल ना के बराबर हो जाते है।

प्रत्येक वर्ष मशीनो के आने से लघु व्यवसाय ठप होने लगे और बेरोजगारी का दल जमा होने लगा। कंप्यूटर का अविष्कार मानवजाति के लिए महत्वपूर्ण है मगर इसने कई लोगो के रोजगार के मौको को भी छीना है।

कभी कभी लोगो को मन मारकर एक ऐसी नौकरी करनी पड़ती है जो उसकी योग्यता अनुसार नहीं है। क्यों की वह यही सोचता है कि कुछ ना करने से तो कुछ करना बेहतर है। इसी कारण उन्हें विवश होकर ऐसी नौकरी करनी पड़ती है।

कभी मनुष्य को नौकरी न मिलने से वह गलत संगत में पड़ जाता है और शार्ट कट से पैसे कमाने के चक्कर में गलत रास्ता पकड़ लेता है। सरकारे आयी और गयी लेकिन बेरोजगारी की समस्या हल होने का नाम ही नहीं लेती है। बेरोजगारी की समस्या चोरी, डैकती और गलत गैरकानूनी चीज़ो का बढ़ावा देती है।

दुनिया में हर देश में बेकारी संबंधित समस्याएं है लेकिन भारत में इस समस्या ने चरम सीमा पकड़ ली है। जनसँख्या वृद्धि जिस रफ़्तार से बढ़ रही है वह दिन दूर नहीं भारत जनसँख्या वृद्धि में पहले पायदान पर खड़ा पाया जाएगा। बेकारी का अगला प्रमुख कारण है शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली में कोई सुधार नहीं हुआ है यहाँ बिज़नेस संबंधित शिक्षा का अभाव देखा जा सकता है। विद्यार्थिओं को तकनिकी शिक्षा पर ज़ोर देना चाहिए।  प्रैक्टिकल क्षेत्रों पर पढ़ाने की आवश्यकता है ताकि युवक रटे रटाये नागरिक न बने। इंजीनियर तो है पर उन्हें मशीनो पर कार्य करना नहीं आता है।

स्किल डेवेलपमेंट जैसी योजनाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और युवाओं को नविन चीज़ो और वस्तुओं की खोज करने की इच्छाशक्ति प्राप्त हो ताकि देश को तरक्की की राह पर ले जा सके और विदेशी कंपनी हमारे देश के उद्योगों पर निवेश करना चाहे।

घरेलु उद्योगों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित ना किया जाना एक  प्रमुख कारण है जिससे बेरोजगारी में इजाफा हो रहा है। बड़े व्यापारियों को बड़े रकम आसानी से प्राप्त हो जाते है मगर लघु उधोगो पर कोई ध्यान नहीं देता है। आम नागरिको को लघु उद्योगों के लिए निवेश नहीं मिल पाता है जिससे लघु उद्योगों की प्रगति रुक ही जाती है।

समस्याओं का समाधान

हमे अपनी शिक्षण प्रणाली को रोजगार अनुकूलित बनाना होगा। व्यावसायिक शिक्षा को महत्व देने की आवश्यकता है। जो युवक स्वंग रोजगार करने की चाह रखते है उन्हें क़र्ज़ प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। देश में कल -कारखानों और नए उद्योगों की स्थापना करनी होगी जहाँ बेहतर रोजगार के अवसर मिल सके। सबसे पहले भ्र्ष्टाचार जो पीढ़ियों दर चली आ रही समस्याएं है जिन पर पर रोक लगाना आवश्यक है युवाओं की उम्मीदों को सही दिशा में प्रोत्साहित करना होगा ताकि वह रोज़गार अवसर हेतु नविन विचारो को तय कर सके।

भारत में बेरोजगारी मिटाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। आये दिन सरकार कई योजनाएं ले आयी है जैसे प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना और शिक्षित बेरोजगार लोन योजना जिनका हमे सोच समझकर उपयोग करने की ज़रूरत है। गरीबी की रेखा में जीने वाले लोगो की अशिक्षा को मिटाने की पुरज़ोर कोशिश करनी होगी।

निष्कर्ष

बेरोजगारी की इन समस्याओं के प्रति सरकार को और अधिक गंभीर होना चाहिए। शिक्षण प्रणाली में सुधार के संग पूरे देश को शिक्षित करना चाहिए ताकि कोई  नागरिक रोजगार से वंचित न रहे। जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं पर पूर्णविराम लगाने की आवश्यकता है।  भारत की भीषण आबादी बेरोजगार को बढ़ावा देने में सहायक है।  सरकार को नयी योजनाओं के साथ प्रशिक्षण केंद्र और शिक्षण व्यवस्था में बदलाव लाने की आवश्यकता है। नए विकास की नीतियों के साथ भारत को आगे बढ़ना है ताकि बेरोजगारी की इस समस्या को जड़ से मिटा सके।

सूर्यकांत त्रिपाठी

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मूल नाम :सूर्यकांत त्रिपाठी

जन्म :21 फ़रवरी 1896 | मिदनापुरपश्चिम बंगाल

निधन :15 अक्तूबर 1961 | इलाहाबादउत्तर प्रदेश

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फ़रवरी 1896 को बंगाल की महिषादल रियासत (ज़िला मेदिनीपुर) में हुआ। इस जन्मतिथि को लेकर अनेक मत हैं, लेकिन इस पर विद्वतजन एकमत हैं कि 1930 से निराला वसंत पंचमी के दिन अपना जन्मदिन मनाया करते थे। ‘महाप्राण’ नाम से विख्यात निराला छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी कीर्ति का आधार ‘सरोज-स्मृति’, ‘राम की शक्ति-पूजा’ और ‘कुकुरमुत्ता’ सरीखी लंबी कविताएँ हैं; जो उनके प्रसिद्ध गीतों और प्रयोगशील कवि-कर्म के साथ-साथ रची जाती रहीं। उन्होंने पर्याप्त कथा और कथेतर-लेखन भी किया। बतौर अनुवादक भी वह सक्रिय रहे। वह हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। वह मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति के पक्षधर हैं। वर्ष 1930 में प्रकाशित अपने कविता-संग्रह ‘परिमल’ की भूमिका में उन्होंने लिखा : ‘‘मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है।’’

 

निराला के बचपन में उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) ज़िले गढ़ाकोला गाँव के रहने वाले थे। वह महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषा और साहित्य का ज्ञान उन्होंने स्वाध्याय से  अर्जित किया। उनका जीवन उनके ही शब्दों में कहें तो दुःख की कथा-सा है। तीन वर्ष की आयु में उनकी माँ का और बीस वर्ष के होते-होते उनके पिता का देहांत हो गया। बेहद अभावों में संयुक्त परिवार की ज़िम्मेदारी उठाते हुए निराला पर एक और आघात तब हुआ, जब पहले महायुद्ध के बाद फैली महामारी में उनकी पत्नी मनोहरा देवी का भी निधन हो गया। इस महामारी में उनके चाचाभाई और भाभी का भी देहांत हो गया। इसके बाद की उनकी जीवन-स्थिति को उनकी काव्य-पंक्तियों से समझा जा सकता है :

 

‘‘धन्ये, मैं पिता निरर्थक का,

कुछ भी तेरे हित न कर सका!

जाना तो अर्थागमोपाय,

पर रहा सदा संकुचित-काय

लख कर अनर्थ आर्थिक पथ पर

हारता रहा मैं स्वार्थ-समर।’’  

 

ये पंक्तियाँ निराला की कालजयी कविता ‘सरोज-स्मृति’ से हैं। यह कविता उन्होंने मात्र उन्नीस वर्ष आयु में मृत्यु को प्राप्त हुई अपनी बेटी सरोज की स्मृति में लिखी।

 

निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष-पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना अनेक संस्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। हिंदी साहित्य संसार में उनके आक्रोश और विद्रोह, उनकी करुणा और प्रतिबद्धता की कई मिसालें और कहानियाँ प्रचलित हैं। उनके जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज नाम के मुहल्ले में 15 अक्टूबर 1961 को उनका देहावसान हुआ।

 

‘अनामिका’ (1923), ‘परिमल’ (1930), ‘गीतिका’ (1936), ‘तुलसीदास’ (1939), ‘कुकुरमुत्ता’ (1942), ‘अणिमा’ (1943), ‘बेला’ (1946), ‘नए पत्ते’ (1946), अर्चना’ (1950), ‘आराधना’ (1953), ‘गीत कुंज’ (1954), ‘सांध्य काकली’

और ‘अपरा’ निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ उनके प्रमुख कहानी-संग्रह और ‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके चर्चित उपन्यास हैं। ‘चाबुक’ शीर्षक से उनके निबंधों की एक पुस्तक भी प्रसिद्ध है।

वर्ष 1976 में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया जा चुका है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय || Swami Vivekanand ka Jivan Parichay

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स्वामी विवेकानंद जी एक भारतीय हिंदू भिक्षु थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को विश्व-भर में प्रसिद्ध किया था। अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म संसद में साल 1893 में इनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी प्रसिद्ध है और इस भाषण के जरिए इन्होंने भारत देश की अलग पहचान दुनिया के सामने रखी थी।


स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से परिचय कराया। स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में निपुण थे। स्वामी विवेकानंद को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोप में हिंदू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया। इनका जन्म कोलकाता के उच्च कुलीन परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्ता। युवावस्था में वह गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क में आए और उनका झुकाव सनातन धर्म की ओर बढ़ने लगा।


    पूरा नाम

  नरेंद्र नाथ दत्त

    जन्म

12 जनवरी 1863, कोलकाता

    मृत्यु

04 जुलाई 1902

गुरु जी का नाम

श्री रामकृष्ण परमहंस

  पिता का नाम

श्री विश्वनाथ दत्त (वकील)

  माता का नाम

श्रीमती भुवनेश्वरी देवी

  संस्थापक

रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन

साहित्यिक कार्य

राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, मेरे गुरु

अन्य महत्वपूर्ण कार्य

न्यूयॉर्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलीफोर्निया में शांति अद्घैत आश्रम की स्थापना



स्वामी विवेकानंद जी का जन्म (Swami Vivekanand Birth) –


इनका जन्म सन 1863 में एक बंगाली परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था और बड़े होकर यह स्वामी विवेकानंद जी के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त एक सफल वकील और विद्वान थे। कलकत्ता उच्च न्यायालय में अटॉर्नी थे। इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। इनकी माता अत्यंत बुद्धिमान व धार्मिक प्रवृत्ति की थी जिसके कारण इन्हें अपनी मां से ही हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला।

स्वामी जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पहले और बड़े इनके पिता पाश्चात्य संस्कृति में विश्वास करते थे। इसलिए वह इन्हें अंग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे। इनका कभी भी अंग्रेजी शिक्षा में मन नहीं लगा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद इनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था इनको यूनिवर्सिटी एंट्रेस लेवल पर 40 फ़ीसदी, एफए में 40 फ़ीसदी और बीए में 56 फ़ीसदी अंक मिले थे।


माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी वह नरेंद्र नाथ (स्वामी जी के बचपन का नाम) के बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाएं करती थी। जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बढ़ते चले गए। कहानियां सुनते समय उनका मन हर्षोल्लास से भर उठता था। रामायण सुनते सुनते बालक नरेंद्र का सरल शिशुहृदय भक्ति रस से भर जाता था। वे अक्सर अपने घर में ही ध्यान मग्न हो जाया करते थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटता था।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा (Swami Vivekanand Education) -


इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज और विद्यासागर कॉलेज से अपनी शिक्षा हासिल की थी। इसके बाद इन्होंने प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय कोलकाता में दाखिला लेने के लिए परीक्षा दी थी। विवेकानंद पढ़ाई में काफी तेज थे और इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था। विवेकानंद को संस्कृत, साहित्य, इतिहास, सामाजिक-विज्ञान, कला, धर्म और बंगाली साहित्य में गहरी दिलचस्पी थी।


स्वामी विवेकानंद का सफर (Swami Vivekananda life Journey) -


वह 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना घर और परिवार को छोड़कर सन्यासी बनने का निर्धारण किया। विद्यार्थी जीवन में वह ब्रह्म समाज के नेता महा ऋषि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। स्वामी जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए इन्होंने नरेंद्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी। स्वामी जी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे। परमहंस जी की कृपया से स्वामी जी आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वह परमहंस जी के प्रमुख शिष्य हो गए।


1885 में रामकृष्ण परमहंस जी को कैंसर के कारण मृत्यु हो गई। उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की आगे चलकर देश का नाम रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन हो गया।


स्वामी विवेकानंद जी और श्री रामकृष्ण परमहंस (Swami Vivekanand and Shri Ram Kishan Paramhans) -

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श्री रामकृष्ण परमहंस जी, स्वामी विवेकानंद के गुरु थे और विवेकानंद ने इन्हीं से धर्म का ज्ञान हासिल किया था। कहा जाता है कि एक बार विवेकानंद जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से एक सवाल करते हुए पूछा था कि क्या आपने भगवान को देखा है? दरअसल विवेकानंद से लोग अक्सर इस सवाल को किया करते थे और उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं हुआ करता था। इसलिए जब वो श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस से यही सवाल किया था। इस सवाल के जवाब में श्री रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद जी से कहा, हां मैंने भगवान को देखा है। मैं आपके अंदर भगवान को देखता हूं। भगवान हर किसी के अंदर स्थापित हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस का ये जवाब सुनकर स्वामी विवेकानंद को संतुष्टि मिली और इस तरह से उनका झुकाव रामकृष्ण परमहंस की ओर बढ़ने लगा और विवेकानंद जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया।


पिता की मृत्यु के बाद विवेकानंद जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात कर उनसे विनती की थी कि वे भगवान से उनके लिए प्रार्थना करें कि भगवान उनके परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर कर दें। तब श्री रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से कहा था कि वे खुद जाकर भगवान से अपने परिवार के लिए दुआ मांगे। जिसके बाद विवेकानंद ने भगवान से प्रार्थना करते हुए उनसे बस सच्चे ज्ञान और भक्ति की कामना की।


स्वामी जी की अमेरिका की यात्रा और शिकागो भाषण (Swami Vivekananda Chicago speech) -


सन् 1893 में विवेकानंद द्वारा शिकागो में दिया गया उनका भाषण भी अधिक प्रसिद्ध रहा था और इस भाषण के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति को पहली बार दुनिया के सामने रखा था। शिकागो में हुए इस विश्व धर्म सम्मेलन में दुनिया भर से कई धर्मगुरु आए थे और अपने साथ अपनी धार्मिक किताबें लेकर आए थे। विवेकानंद जी इस सम्मेलन में धर्म का वर्णन करने के लिए श्री भगवत गीता अपने साथ लेकर आए थे। जैसे ही स्वामी विवेकानंद ने अपने अध्यात्म और ज्ञान के भाषण की शुरुआत की तब सभा में मौजूद हर व्यक्ति उनके भाषण को गौर से सुनने लगा और भाषण खत्म होते ही हर किसी ने तालियां बजानी शुरू कर दी।


दरअसल विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत अमेरिकी भाइयों और बहनों कहकर की थी और इसके बाद उन्होंने वैदिक दर्शन का ज्ञान दिया था और सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। विवेकानंद के इस भाषण से भारत की एक नई छवि दुनिया के सामने बनी थी और आज भी स्वामी जी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण को लोगों द्वारा याद रखा गया है।


रामकृष्ण मिशन की स्थापना (Ramkrishna mission foundation) -


स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई 1897 में की थी और इस मिशन के तहत उन्होंने नए भारत के निर्माण का लक्ष्य रखा था और कई सारे अस्पताल, स्कूल और कॉलेजों का निर्माण किया था। रामकृष्ण मिशन के बाद विवेकानंद जी ने सन 1898 में Belur math (बेलूर मठ) की स्थापना की थी। इसके अलावा इन्होंने अन्य और दो मठों की स्थापना की थी।


स्वामी विवेकानंद का प्रभाव (Influence of Swami Vivekananda) - 


स्वामी विवेकानंद एक ऐसी हस्ती थे जिनका प्रभाव कई ऐसे लोगों पर पड़ा जो स्वयं दूसरों को प्रभावित करने में पूर्णता सक्षम थे। इन लोगों में मुख्य रूप से शामिल है हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस, औरोबिंदो घोष, रविंद्र नाथ टैगोर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, जमशेदजी टाटा, निकोला टेस्ला, एनी बेसेंट, नरेंद्र मोदी और अन्ना हजारे आदि।


स्वामी विवेकानंद के साहित्यकार कार्य (Swami Vivekanand literary works) - 

बनाहट्टी के अनुसार स्वामी विवेकानंद एक अच्छे चित्रकार, लेखक और गायक थे। वे अपने आप में एक संपूर्ण कलाकार थे। उनके द्वारा लिखे गए निबंध रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन दोनों ही मैगजीन में छपे उनकी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ थी। जिसके कारण उनके द्वारा दिए गए लेक्चर और भी अधिक प्रभावी और समझने में आसान होते थे।


इन की कुछ रचनाएं जो इनके जीवन काल में ही प्रकाशित (Published in his Lifetime) हुई उनका विवरण निम्नानुसार है। - 


प्रकाशन का वर्ष

रचना का नाम

1887

संगीत कल्पतरू (वैष्णव चरण बसख के)

1896

कर्मयोग

1896

राजयोग (न्यूयॉर्क में दिए गए भाषणों के दौरान कही गई बातों का संकलन)

1896

लेक्चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्मोड़ा

मार्च,1899

बंगाली रचना - वर्तमान भारत

( उद्बोधन में प्रकाशित)

1901

माय मास्टर (न्यूयॉर्क की बेकर एंड टेलर कंपनी द्वारा)

1902

वेदांत फिलोसोफी : जनाना योग पर लेक्चर 



स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु (Swami Vivekananda Death) -


स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन की अंतिम सांस बेलूर में ली थी। जिस वक्त इनकी मृत्यु हुई थी उस समय इनकी आयु महज 39 साल की थी। इनका निधन 4 जुलाई 1902 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु से ठीक है कुछ समय पहले ही उन्होंने अपने शिष्यों से बात की थी और अपने शिष्यों को कहा था कि वो ध्यान करने जा रहे हैं। विवेकानंद जी के शिष्यों के अनुसार उन्होंने महा-समाधि ली थी।


विवेकानंद जी की जयंती (Swami Vivekanand Jayanti) -


विवेकानंद जी की जयंती हर साल 12 जनवरी को आती है और इनकी जयंती को हर वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस (National youth day) के रूप में मनाया जाता है। विवेकानंद जी ने जो योगदान हमारे देश को दिया है उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।


विवेकानंद से जुड़ी अन्य जानकारी —


1.साल 1884 में स्वामी विवेकानंद के पिता श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई थी। जिसके चलते पूरे परिवार की जिम्मेदारी विवेकानंद के ऊपर आ गई थी। अपने पिता की मृत्यु के तुरंत बाद ही विवेकानंद की तलाश में लग गए थे लेकिन वो असफल रहे।


2. विवेकानंद जी केवल गेरुआ रंग के वस्त्र पहनते थे। इन्होंने 25 वर्ष की आयु से ही इस रंग के वस्त्र पहनना शुरू कर दिया था।


3. इन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की थी।


4. विवेकानंद जी के कुल 9 भाई-बहन थे।


5. स्वामी विवेकानंद की रूचि पढ़ाई के अलावा व्यायाम और खेलों में की थी और यह बचपन में तरह-तरह के खेल खेला करते थे।


6. विवेकानंद ने अपने जीवन काल में कई देशों का दौरा किया था और दुनिया भर में हिंदू धर्म का प्रचार किया था और साल 1894 में इन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की थी।


7. ऐसा कहा जाता है कि विवेकानंद जी ने अपने जीवन की भविष्यवाणी करते हुए एक बार कहा था कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे।


स्वामी विवेकानंद की किताबें (Swami Vivekananda Books) -


ज्योतिपुंज विवेकानंद जी द्वारा हिंदू, धर्म, योग एवं अध्यात्म पर लिखी गई सभी पुस्तकों के नाम नीचे दिए गए हैं–


1.कर्मयोग  2.ज्ञानयोग  3.भक्तियोग  4.प्रेमयोग 5.हिंदू धर्म,  6.मेरा जीवन तथा ध्येय  7.जाति, संस्कृति और समाजवाद  8. वर्तमान भारत  9. पवहारि बाबा 10. मेरी समर नीति 11. जागृति का संदेश 12. भारतीय नारी 13. ईशदूत ईसा 14. धर्मतत्व  15.शिक्षा 16. राजयोग 17. मरणोत्तर जीवन


Frequently asked question - 


1. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 को हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ा कर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे।


2. हिंदी निबंध विषय स्वामी विवेकानंद का जीवन और कार्य आज के युवाओं के लिए कैसे प्रेरणादायक हो सकते हैं?


उत्तर - वर्तमान में भारत के युवा जिस महापुरुष के विचारों को आदर्श मानकर उनसे प्रेरित होते हैं, युवाओं के मार्गदर्शक और भारतीय गौरव हैं स्वामी विवेकानंद भारत की गरिमा को वैश्विक स्तर पर सम्मान के साथ बरकरार रखने के लिए स्वामी विवेकानंद के कई उदाहरण इतिहास में मिलते हैं स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 को हुआ।


3. स्वामी विवेकानंद ने कौन-कौन से कार्य किए?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धार्मिक सम्मेलन में उन्होंने भारत और हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व किया था। हिंदुत्व को लेकर उन्होंने जो व्याख्या दुनिया के सामने रखी उसकी वजह से इस धर्म को लेकर काफी आकर्षण बढ़ा।


4. स्वामी विवेकानंद के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद के जीवन से मुझे धार्मिक कम अध्यात्मिक ज्यादा बना दिया उन्होंने ही सबसे पहले भारत से बाहर जाकर हिंदू धर्म की व्याख्या की। वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे और सबसे बड़ी चीज यह थी कि वह किसी भी कर्मकांड या मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे और अपने योग के बल पर ही दिव्य दृष्टि प्राप्त की थी।


5. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कब और कहां हुआ?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 (विद्वानों के अनुसार मकर संक्रांति संवत 1920) को कोलकाता में एक कुलीन कारस्थ परिवार में हुआ था उनके बचपन का घर का नाम वीरेंद्र ेश्वर रखा गया, किंतु उनका औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त। पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील थे।


6. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या है?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।


7. स्वामी विवेकानंद के गुरु का क्या नाम है?


उत्तर - स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था।


8. स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की?


उत्तर - क्योंकि सांसारिक भोग और विलासिता से ऊपर उठकर जीने की उनकी चेतना ने आकार लेना शुरू कर दिया था इसलिए शादी के प्रस्ताव पर "ना" ही  करते रहे।

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